जल थल मल
लेखक : सोपान जोशी
ISBN : 978-93-82400-26-4
212 pages | Paperback
About the Book
शौचालय का होना या न होना भर इस किताब का विषय नहीं है। यह तो केवल एक छोटी सी कड़ी है, शुचिता के तिकोने विचार में। इस त्रिकोण का अगर एक कोना है पानी, तो दूसरा है मिट्टी , और तीसरा है हमारा शरीर। जल, थल और मल।
पृथ्वी को बचने की बात तो एकदम नहीं है। मनुष्य की जाट को खुद अपने आप को बचाना है, अपने आप ही से। पुराण किस्सा बताता है की समुद्र मंथन से विष भी निकलता है और अमृत भी। यह धरती पर भी लागू होता है। हमारा मल या तो विष का रूप ले सकता है या अमृत का।
इसका परिणाम किसी भी सरकार या राजनीतिक पार्टी या किसी नगर निगम की नीति-अनीति से तय नहीं होगा। तय होगा तो हमारे समाज के मन की सफाई से। जल, थल और मल के संतुलन से।
विषय सूचि :
१. जल, थल और मल
२. शौचालय से निकले कुछ विचार
३. सफाई के मंदिर में बलि प्रथा
४. शरीर से नदी की दूरी
५. गोदी में खेलती है इसकी हज़ारो नालिया
६. मैले पानी का सुनहरा सच
७. पुतले हम मिटटी के
८. खाद्य सुरक्षा की थल सेना
९. मल का थल विसर्जन
१०. मलदर्शन
११. संदर्भ
१२. सूची