मुक्तांगन
लेखक : डॉ. अनिल अवचट
ISBN : 978-93-82400-19-6
192 pages | Paperback
About the Book
जब लोग दारू या ड्रग्स के चंगुल में फंसते हैं तब उनका पूरा परिवार बरबाद हो जाता है। उस स्थिति से उबरने के लिए एडिक्ट और उसके सगे-संबंधियों को बहुत कठिन प्रयास करना पड़ता है। आज कई संस्थाएं शराब या ड्रग्स मुक्ति के काम में लगी है। पर आज से पच्चीस साल पहले बहुत कम ही लोग इस क्षेत्रा में कार्यरत थे। तब चंद लोगों ने नशाबंदी के एक अभिनव कार्यक्रम का सूत्रापात किया। इस प्रयोग ने, भारतीय सांस्कृति परिवेश के संदर्भ में, पुनर्वसन का पथ-प्रदर्शक कार्य प्रारम्भ किया। इस तरीके में मरीज और उसके परिवारजनों का सहयोग अनिवार्य था। इसमें ‘व्यक्ति’ उपचार का केंद्र था, और औषधियों पर निर्भरता न्यूनतम थी। इस अग्रणी प्रयोग का नाम था - मुक्तांगन और वो पिछले 25 सालों से नशामुक्ति के कार्य में सक्रिय है।
मुक्तांगन की कहानी को उसके संस्थापक डाॅ. अनिल अवचट ने लिखा है। वो मराठी साहित्य के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है, जिसमें साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित सम्मान भी शामिल है।
अनुक्रमणिका : प्रस्तावना
अध्याय-1 : वर्ष 1985 की एक दोपहर
अध्याय-2 : एक-एक दिन करके जियो
अध्याय-3 : जिंदगी की भट्टी में पके बर्तन
अध्याय-4 : दुनिया में अन्य कोई शाखा नहीं
अध्याय-5 : मेरी हंसी: मेरा हक
अध्याय-6 : मुक्तांगन - नए स्थान पर
अध्याय-7 : "में गलती बताएं, हम उन्हें सुधरेंगे।"
अध्याय-8 : फाॅलो-अप और दूसरों के साथ बांटना
अंत के शब्द