आवर्तनशील खेती
लेखक : प्रेम सिंह
ISBN : 978-93-82400-25-7
69 pages | Paperback
About the Book
किसी भी विषय के सम्पूर्ण विवेचन हेतु तीन प्रश्नों का विश्लेषण आवश्यक है। क्या? क्यों? और कैसे? वर्तमान में खेती कैसे करें के विषय में वैज्ञानिको, कृषि विभागों, किसान के मध्य कार्यरत समाज-सेवियों के द्वारा लिखित अनेकों साहित्य उपलब्ध हंै किन्तु खेती क्या है? खेती क्यों करें? इस बारे में शायद ही कोई साहित्य उपलब्ध हो, क्योंकि यह प्रश्न सीधे तौर पर किसानों से जुड़ा हुआ है। दूसरे क्षेत्र से जुड़े लोगों के द्वारा किसानी के संबंध में जितने भी सुझाव दिए जाते हैं वे अपूर्ण होते हैं। किसानों की समस्या और समाधान के लिए किसानी की सम्पूर्णता का ज्ञान आवश्यक है और किसानी की सम्पूर्णता का ज्ञान किसान होने पर ही संभव है। किसान ही खेती की समस्याओं के कारण और निवारण को ठीक से प्रस्तुत कर सकता है।
पुस्तक उरोक्त दोनों प्रश्नों के उत्तर देने का एक प्रयास है। यदि सामाजिक व्यवस्था पर गौर करें तो हम पाते हैं कि कुछ लोग श्रम आधारित जीविकोपार्जन में लगे हुए हैं जैसे मजदूरी और कुछ लोग बुद्धि आधारित जीविकोपार्जन में लगे हैं जैसे नौकरी। मजदूरी ‘‘विवेकहीन श्रम’’ है तो नौकरी ‘‘श्रम विहीन विवेक’’ है जो व्यक्तिगत रूप से तनाव और सामाजिक रूप से संघर्ष उत्पन्न करता है जबकि एक तीसरा क्षेत्र एवं वर्ग भी है जिसे खेती-किसानी कहा जाता है। किसानी एक ऐसा आजीविका का स्रोत है जो ‘‘विवेकयुक्त श्रम’’ है अर्थात सार्थक श्रम है। इस वर्ग की विश्व स्तर पर स्थायी रोजगार के रूप में पहचान नहीं है जबकि यही वर्ग धरती को मनुष्य के रहने योग्य बनाए रखता है तथा मौलिक आवश्यकताओं का उत्पादन करता है। इस वर्ग के द्वारा उत्पादित वास्तविक धन को बाकी वर्गो के लोग प्रकारान्तर से अपने कृत्रिम धन (पत्र मुद्रा) के द्वारा अनेकों माध्यम से अवमूल्यन करके छीनते-हड़पते हैं। यह सर्वाधिक रचनात्मक एवं तृप्त वर्ग है। सामाजिक एवं पर्यावरणीय संतुलन के लिए इस वर्ग का सर्वाधिक होना आवश्यक है। अतः इस वर्ग के द्वारा किये जा रहे पर्यावरणीय, खाद्यान सुरक्षा आदि कार्यो को ‘‘जीवन रक्षक कार्य’’ घोषित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय महत्व के कार्य के रूप में प्रतिष्ठा एवं पहचान आवश्यक है तदानुसार सम्मान अर्थात राज्य स्तर पर नीतिगत हस्तक्षेप के अवसर एवं समाज स्तर पर पुरस्कार ही परिवार स्तर पर खेती के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। यह पुस्तक आपकी सेवा में खेती की सार्थकता पर विचार-विमर्श करने और तदानुरूप जीने के लिए समर्पित है।